‘गब्बर इज़ बैक’ - एक ऐसी फिल्म जिसे अपनी तरफ़ ध्यान खींचने के लिए हिंदी सिनेमा के सबसे मशहूर किरदार (गब्बर) का सहारा लेना पड़ा. लेकिन साबित करती है सिर्फ़ नाम ही काफ़ी नहीं होता. नयेपन के नाम पर इस फिल्म में सिर्फ़ अक्षय कुमार का हेयरस्टाइल नया है. बाक़ी तो जो है सो है. फिल्म ख़त्म होने के बाद अक्षय कुमार के जो एक-दो संवाद आपको याद रह जाते हैं, वो भी सलीम-जावेद के लिखे हुए ‘शोले’ के संवाद हैं.
फिल्म की शुरुआत में महाराष्ट्र के अलग अलग शहरों से 10 भ्रष्ट तहसीलदारों का अपहरण होता है और उसमें से एक सबसे करप्ट तहसीलदार फांसी पर लटका मिलता है. पता चलता है कि इसके पीछे गब्बर (अक्षय कुमार) नाम का आदमी है जिसने करप्शन को ख़त्म करने का बीड़ा उठाया है. भ्रष्ट अफसरों का मारने का ये सिलसिला जारी रहता है. इसका मुक़ाबला करने के लिए सीबीआई अफसर और पुलिस की स्पेशल टीमें गठित होती हैं. सब परेशान हैं कि गब्बर का गुस्सा क्यों आया? पता चलता है कि गुस्से की वजह है करप्ट बिजनेसमैन दिग्विजय पाटिल (सुमन तलवार) जिसकी वजह से प्रोफेसर आदित्य उर्फ गब्बर का परिवार खत्म हुआ था. मामला सीधा बदले का है और बदला भी 70-80 के दशक की फिल्मों जैसा.
‘गब्बर इज़ बैक’ तमिल फिल्म ‘रमन्ना’ की रीमेक है. पिछले 10 सालों से दक्षिण की एक्शन फिल्में देख-देखकर ना बॉलीवुड के दर्शक थक रहे हैं, ना उन्हें बनाने वाले निर्माता-निर्देशक. फिल्म की एक सबसे बड़ी ख़ासियत अगर कोई है तो वो है फिल्म की रफ़्तार. निर्देशक कृष ने बिलकुल तमिल मसाला सिनेमा के अंदाज़ में निर्देशन किया है. फिल्म में बेवकूफ़ी से भरी घटनाए भी इतनी तेज़ी से घटती है कि सोचने का वक़्त नहीं मिलता.
ऐसी फिल्मों में ये काम अगर रजनीकांत करते हैं तो कम से कम आप हंस सकते हैं. लेकिन यहां पर बकवास कहानी को गंभीरता से लिया गया है. फिल्म में एक डायलॉग है कि ‘हमारा सिस्टम बच्चों के डायपर जैसा हो गया है, कहीं गीला...कहीं ढीला’. क्या आप इसपर तालियां बजाना चाहेंगे? तालियां बटरोने के लिए फिल्म में रिश्वतखोर अफ़सर, अस्पताल माफिया और भ्रष्ट बिल्डरों के खिलाफ़ खूब बिगुल बजाया गया है. लेकिन हर डायलॉग, कहानी, फाइट सीन... सब कुछ देखा हुआ लगता है. यही फिल्म की सबसे बड़ी कमी है.
फिल्म के हर फ्रेम में अक्षय कुमार हैं. उनके चेहरे को देखने से ही साफ़ जाहिर हो जाता है कि शूटिंग के समय ही उन्हें जैसे यक़ीन है कि 100 करोड़ की कमाई तो पक्की है. फिल्म में विलेन की भूमिका में तमिल फिल्मों में मशहूर खलनायक सुमन तलवार हैं. उनका अभिनय ओवरएक्टिंग की क्लास है. ऐसा लगता है जैसे 1980 की किसी फिल्म से निकल कर सीधे 2015 में आ गए हैं. श्रुति हासन वही काम कर रही हैं जो ऐसी फिल्मों में हीरोइन को दिया जाता है. यानि गाने गाना और अपना मज़ाक उड़ा कर दर्शकों को हंसाना. ये वाक़ई मुश्किल काम है. करीना कपूर खान कभी एक गाने में नज़र आती हैं.